आचार्य श्रीराम शर्मा >> अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रहश्रीराम शर्मा आचार्य
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जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह
(भ)
भँवरजाल बगुजाल है, बूढ़े बहुत अचेत।
कहहिं कबीर ते बाँचि हैं, जाके हृदय विवेक॥
भँवर विलम्बे बाग में, बहु फूलन की बास।
जीव विलम्बे विषय में, अंतहु चले निराश॥
भक्ति की झंकार उर के, तारों में कर्तार भर दो।
लौट जाये स्वार्थ, कटुता, द्वेष, दम्भ निराश होकर॥
भगति बिगाडी कामिया इन्द्री केरै स्वादि।
हीरा खोया हाथ थें, जनम गँवाया बादि॥
भगति भजन हरि नाँव है, दूजा दुक्ख अपार।
मनसा वाचा क्रमना, कबीर सुमिरण सार॥
भगवान मेरी नैया, उस पार लगा देना।
अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा देना॥
भजन कयो तासो भज्यो, भज्यो न एकौ बार।
दूर भजन जासो कह्यो, सो तू भज्यो गँवार॥
भजों तो काको मैं भजौं, तजौं तो काको आन।
भजन तजन ते बिलग है, तेहि रहीम तू जान॥
भटक रहा है जनम जनम से, हंसा भूखा प्यासा रे।
तुम लाये जल घाट-घाट से, फिर भी रहा उदासा रे॥
भर-भर आए नयन हमारे, भरा तुम्हारा जीवन होगा।
सदा हमारे आशीषों से, भरा तुम्हारा जीवन होगा॥
भरम बढ़ा तिहुँलोक में, भरम मण्डा सब ठाँव।
कहहि कबीर पुकारि के, तुम बसेउ भरम के गाँव॥
भरी भीड़ में एकाकी हम, भटक रहे थे राहों पर।
उत्तर से संकेत हमें दे, हम सबका कल्याण किया।।
भलाई किसी की नहीं कर सको यदि,
बुराई का कोई कदम मत उठाओ।
अगर चाहते हो स्वयं को उठाना,
तो उठते हुओं को कभी मत गिराओ॥
भली करत लागत बिलम, बिलम न बुरे विचार।
भवन बनावत दिन लगौं, ढाहत लगत न वार॥
भले बुरे अँह एक से, तहाँ न बसिये जाय।
जो अंधेर नगरी बिकें, खरि गुरु एकै भाय॥
भले ही कही राह दिखती नहीं है, रुके पग थके बाँह उठती नहीं है।
मगर पास मेरे जो आ जाओगे,तो जीवन नया एक पा जाओगे॥
भार झेंकि कै भार में, रहिमन उतरे पार।
वै बूढ़े मंझधार में, जिनके सिर पर भार॥
भारत का भाग्य जगायेंगी, अब भारत की ललनाएँ।
नारी का मान बढ़ायेंगी, अब भारत की ललनाएँ।।
भारत माँ की आशाओं के, उज्ज्वल दीप बनेंगे हम।
जिसमें सुख का मोती चमके, ऐसे सीप बनेंगे हम॥
भारत माता पूछ रही है, अपनी प्रिय संतानों से।
कब मुझको आजाद करोगे, चोरों से बेइमानों से॥
भारत में फिर से आजा, गिरवर उठाने वाले।
सोतों को फिर जगा जा, गीता के गाने वाले॥
भावी काहू न दही, भावी दह भगवान।
भावी ऐसी प्रबल है, कहि रहीम यह जान॥
भूखे भजन न होत है, नहीं सुहाबै राग।
पेट भरे पे लगत है, सबको नीकी फाग॥
भूप गनत लघु गुनिन को, गुनी गनत लघु भूप।
रहिमन गिरि ते भूमि लौं, लखौ एकै रूप॥
भूल गये ते काम है, तै मत भरम भुलाव।
मन सागर मनसा लहरि, बहै कतहुँ मत जाव॥
भूला तो भूला बहुरि के चेतना।
विस्मय की घुटी संशय का रेतना॥
भेष बनावे सुर कौं, कायर सूर न होय।
खाल उढ़ावें सिंह की, स्यार सिंह नहिं होय॥
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